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कमरे में धूप / अनिल जनविजय
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{{KKRachna
|रचनाकार=अनिल जनविजय
|संग्रह=माँ, बापू कब आएंगे
/ अनिल जनविजय
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कमरे में एकान्त है
फूल है
उदासी है
अंधेरा है
बेचैनी है कमरे में
क्या नहीं है
क्या है कमरे में
रात है धूप नहीं है
सुबह होगी
निकलेगा सूरज
कमरे में छिटकेगी धूप
फूल से गले मिलेगी
धूप को चूमेगा फूल
शोर होगा
ख़ुशी होगी
गूँजेंगी किलकारियाँ
हँसी होगी
रोशनी होगी
कमरे में
</poem>
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