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सूरज / अनिल जनविजय
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|संग्रह=कविता नहीं है यह / अनिल जनविजय
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
सूरज
क़िताब पढ़ रहा है
एक लम्बा भूमिगत इतिहास
यातना के भयानक सब
क्षणॊं
क्षणों
को
मन ही मन फिर गढ़ रहा है
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