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22:43, 13 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
वह जा रही होती है
किसी और के पास
ठीक यही वक़्त होता है
हाँ यही
जब मैं कविता की तरफ़ रवाना होता हूँ
कि जिस समय
मैं विचार से टकराता हूँ
वह एक दीवार होती है
चिड़िया तक नहीं हिलती मुंडेर से
चींटी भी नहीं गिरती
काँपता हुआ हटता हूँ मैं
काँपता हुआ बेहिसाब ।