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जीवन-नाव अँधेरे अन्धड़ मे चली। | जीवन-नाव अँधेरे अन्धड़ मे चली। | ||
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अद्भूत परिवर्तन यह कैसा हो चला। | अद्भूत परिवर्तन यह कैसा हो चला। | ||
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निर्मल जल पर सुधा भरी है चन्द्रिका, | निर्मल जल पर सुधा भरी है चन्द्रिका, | ||
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बिछल पड़ी, मेरी छोटी-सी नाव भी। | बिछल पड़ी, मेरी छोटी-सी नाव भी। | ||
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वंशी की स्वर लहरी नीरव व्योम में- | वंशी की स्वर लहरी नीरव व्योम में- | ||
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गूँज रही हैं, परिमल पूरित पवन भी- | गूँज रही हैं, परिमल पूरित पवन भी- | ||
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खेल रहा हैं जल लहरी के संग में। | खेल रहा हैं जल लहरी के संग में। | ||
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प्रकृति भरा प्याला दिखलाकर व्योम में- | प्रकृति भरा प्याला दिखलाकर व्योम में- | ||
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बहकाती हैं, और नदी उस ओर ही- | बहकाती हैं, और नदी उस ओर ही- | ||
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बहती हैं। खिड़की उस ऊँचे महल की- | बहती हैं। खिड़की उस ऊँचे महल की- | ||
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दूर दिखाई देती हैं, अब क्यों रूके- | दूर दिखाई देती हैं, अब क्यों रूके- | ||
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नौका मेरी, द्विगुणित गति से चल पड़ी। | नौका मेरी, द्विगुणित गति से चल पड़ी। | ||
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किन्तु किसी के मुख की छवि-किरणें घनी, | किन्तु किसी के मुख की छवि-किरणें घनी, | ||
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रजत रज्जु-सी लिपटी नौका से वहीं, | रजत रज्जु-सी लिपटी नौका से वहीं, | ||
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बीच नदी में नाव किनारे लग गई। | बीच नदी में नाव किनारे लग गई। | ||
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उस मोहन मुख का दर्शन होने लगा। | उस मोहन मुख का दर्शन होने लगा। | ||
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00:26, 20 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
जीवन-नाव अँधेरे अन्धड़ मे चली।
अद्भूत परिवर्तन यह कैसा हो चला।
निर्मल जल पर सुधा भरी है चन्द्रिका,
बिछल पड़ी, मेरी छोटी-सी नाव भी।
वंशी की स्वर लहरी नीरव व्योम में-
गूँज रही हैं, परिमल पूरित पवन भी-
खेल रहा हैं जल लहरी के संग में।
प्रकृति भरा प्याला दिखलाकर व्योम में-
बहकाती हैं, और नदी उस ओर ही-
बहती हैं। खिड़की उस ऊँचे महल की-
दूर दिखाई देती हैं, अब क्यों रूके-
नौका मेरी, द्विगुणित गति से चल पड़ी।
किन्तु किसी के मुख की छवि-किरणें घनी,
रजत रज्जु-सी लिपटी नौका से वहीं,
बीच नदी में नाव किनारे लग गई।
उस मोहन मुख का दर्शन होने लगा।