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|संग्रह=झरना / जयशंकर प्रसाद
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नदी की विस्तृत वेला शान्त,
 
अरुण मंडल का स्वर्ण विलास;
 
निशा का नीरव चन्द्र-विनोद,
 
कुसुम का हँसते हुए विकास।
 
एक से एक मनोहर दृश्य,
 
प्रकृति की क्रीड़ा के सब छंद;
 
सृष्टि में सब कुछ हैं अभिराम,
 
सभी में हैं उन्नति या ह्रास।
 
बना लो अपना हृदय प्रशान्त,
 
तनिक तब देखो वह सौन्दर्य;
 
चन्द्रिका से उज्जवल आलोक,
 
मल्लिका-सा मोहन मृदुहास।
 
अरुण हो सकल विश्व अनुराग
 
करुण हो निर्दय मानव चित्त;
 
उठे मधु लहरी मानस में
 
कूल पर मलयज का हो वास।
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