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{{KKRachna
|रचनाकार=जयशंकर प्रसाद
|संग्रह=कानन-कुसुम / जयशंकर प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}कानन-कुसुम - <poem>
अखिल विश्व में रमा हुआ है राम हमारा
 
सकल चराचर जिसका क्रीड़ापूर्ण पसारा
 
इस शुभ सत्ता को जिसमे अनुभूत किया था
 
मानवता को सदय राम का रूप दिया था
 
नाम-निरूपण किया रत्न से मूल्य निकाला
 
अन्धकार-भव-बीच नाम-मणि-दीपक बाला
 
दीन रहा, पर चिन्तामणि वितरण करता था
 
भक्ति-सुधा से जो सन्ताप हरण करता था
 
प्रभु का निर्भय-सेवक था, स्वामी था अपना
 
जाग चुका था, जग था जिसके आगे सपना
 
प्रबल-प्रचारक था जो उस प्रभु की प्रभुता का
 
अनुभव था सम्पूर्ण जिसे उसकी विभुता का
 
राम छोड़कर और की, जिसने कभी न आस की
 
'राम-चरित-मानस'-कमल जय हो तुलसीदास की
</poem>
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