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"आलाप में गिरह (कविता) / गीत चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

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16:48, 25 दिसम्बर 2009 का अवतरण

जाने कितनी बार टूटी लय

जाने कितनी बार जोड़े सुर

हर आलाप में गिरह पड़ी है


कभी दौड़ पड़े तो थकान नहीं

और कभी बैठे-बैठे ही टप् से गिर पड़े

मुक़ाबले में इस तरह उतरे कि उसे दया आ गई

और उसने ख़ुद को ख़ारिज कर लिया

थोड़ी-सी हँसी चुराई

सबने कहा छोड़ो भी


और हमने छोड़ दिया