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"भय / मोहन राणा" के अवतरणों में अंतर

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लताओं से लिपटे पुराने पेड़
 
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गहरी छायाओं में सोया है जंगल
 
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मेरी बढ़ती हुई धड़कन में
 
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सहमा है रक्त
 
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उत्तेजना में देखता हूँ
 
उत्तेजना में देखता हूँ
 
 
छुपे हुए चेहरों को
 
छुपे हुए चेहरों को
 
 
उतरते हुए मुखौटों को
 
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छनती हुई रोशनी के आर पार
 
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जो पहुँच जाती है मेरी जड़ों में भी,
 
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क्यों चला आया मैं यहाँ
 
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अकेले ही
 
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जो नहीं था उसे
 
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ले आया यहाँ
 
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'''रचनाकाल: 18.8.2002
 
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18.8.2002
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17:25, 26 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

लताओं से लिपटे पुराने पेड़
गहरी छायाओं में सोया है जंगल
मेरी बढ़ती हुई धड़कन में
सहमा है रक्त
उत्तेजना में देखता हूँ
छुपे हुए चेहरों को
उतरते हुए मुखौटों को
छनती हुई रोशनी के आर पार
जो पहुँच जाती है मेरी जड़ों में भी,
क्यों चला आया मैं यहाँ
अकेले ही
जो नहीं था उसे
ले आया यहाँ

रचनाकाल: 18.8.2002