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"गिरगिट / मोहन राणा" के अवतरणों में अंतर

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हम रुक कर चौंकते हैं जैसे पहली बार
 
हम रुक कर चौंकते हैं जैसे पहली बार
 
 
देखते एक दूसरे को
 
देखते एक दूसरे को
 
 
जानते हुए भी कि पहचान पुरानी है,
 
जानते हुए भी कि पहचान पुरानी है,
 
 
करते इशारा एक दिशा को
 
करते इशारा एक दिशा को
 
 
वह हरा कैसा है क्या रंग वसंत का है!  
 
वह हरा कैसा है क्या रंग वसंत का है!  
 
 
वह गर्मियों का भी नहीं लगता,
 
वह गर्मियों का भी नहीं लगता,
 
 
आइये ना वहाँ साथ सुनने कुछ कविताएँ
 
आइये ना वहाँ साथ सुनने कुछ कविताएँ
 
 
पर उन वनों में विलुप्त है सन्नाटा
 
पर उन वनों में विलुप्त है सन्नाटा
 
 
अनुपस्थित है चिड़ियाँ
 
अनुपस्थित है चिड़ियाँ
 
 
कातर आवाजें वहाँ...  
 
कातर आवाजें वहाँ...  
 
 
कैसे मैं जाऊँ वहाँ कविताएँ सुनने,  
 
कैसे मैं जाऊँ वहाँ कविताएँ सुनने,  
 
  
 
हम रुकते हैं पलक झपकाते
 
हम रुकते हैं पलक झपकाते
 
 
झेंपते
 
झेंपते
 
 
जैसे छुपा न पाते झूठ को कहीं टटोलते
 
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कोई जगह
 
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बदलते कोई रंग
 
बदलते कोई रंग
 
 
कोई चेहरा
 
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'''रचनाकाल: 27.4.2006
 
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27.4.2006
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17:38, 26 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

हम रुक कर चौंकते हैं जैसे पहली बार
देखते एक दूसरे को
जानते हुए भी कि पहचान पुरानी है,
करते इशारा एक दिशा को
वह हरा कैसा है क्या रंग वसंत का है!
वह गर्मियों का भी नहीं लगता,
आइये ना वहाँ साथ सुनने कुछ कविताएँ
पर उन वनों में विलुप्त है सन्नाटा
अनुपस्थित है चिड़ियाँ
कातर आवाजें वहाँ...
कैसे मैं जाऊँ वहाँ कविताएँ सुनने,

हम रुकते हैं पलक झपकाते
झेंपते
जैसे छुपा न पाते झूठ को कहीं टटोलते
कोई जगह
बदलते कोई रंग
कोई चेहरा

रचनाकाल: 27.4.2006