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भूल-भुलैया / मोहन राणा

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|संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदी / मोहन राणा
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अधजागा ही सोया गया मैं
 
फिर भी बंद न हुआ सोचना
 
झरती रही कतरनें मन में
 
तुम्हें याद करते
 
कभी हँस देता
 
कभी सोचता
 
कोई और संभावना
 
उस रास्ते पर अब चौड़ी सड़क है
 
चहल-पहल पर वह जगह नहीं
 
जो वहाँ थी
 
बस स्मृति है !
 
हर गली से हम पहुँचते फिर उसी सड़क के कोने पर
 
अधजागा मैं बढ़ाता हाथ
 
छूटते सपने की ओर,
 
कोई आता निकट
 
दूर होता जाता भूल-भुलैया में
 
फिर वहीं अपने संशय के साथ
 '''रचनाकाल: 24.11.2003</poem>
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