भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़ूब सज रहे / नागार्जुन

20 bytes added, 13:59, 26 दिसम्बर 2009
|संग्रह=खिचड़ी विप्लव देखा हमने / नागार्जुन
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
ख़ूब सज रहे आगे-आगे पंडे
 
सरों पर लिए गैस के हंडे
 
बड़े-बड़े रथ, बड़ी गाड़ियाँ, बड़े-बड़े हैं झंडे
 
बाँहों में ताबीज़ें चमकीं, चमके काले गंडे
 
सौ-सौ ग्राम वज़न है, कछुओं ने डाले हैं अण्डे
 
बढ़े आ रहे, चढ़े आ रहे, चिकमगलूरी पंडे
 
बुढ़िया पर कैसी फबती है दस हज़ार की सिल्कन साड़ी
 
उफ़, इसकी बकवास सुनेंगे लाख-लाख बम्भोल अनाड़ी
 
तिल-तिल कर आगे खिसकेगी प्रजातंत्र की खच्चर-गाड़ी
 
पूरब, पश्चिम, दक्खिन, उत्तर आसमान में उड़े कबाड़ी
 
(रचनाकाल : 1978)
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits