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फाँसें / आरागों

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|रचनाकार=लुई आरागों
}}
 {{KKCatKavita}}
<poem>
:::'''1 
रोक दे कराहना कि कुछ न होगा
इससे अधिक अजीब
और वह रोता न हो
:::'''2 
मैं घूमता हूँ
अपने भीतर साये का खंजर लिए
अपने दिल में बड़ा-सा घाव लिए
:::'''3 
यकीन करें मुझ पर
सबसे बुरी बात है यह
कि सोचता है कोई
:::'''4 
जितनी
छोटी हो
मन में
</poem>:::'''5इस कवि को खदेड़ देना होगा शहर से बाहरजगह नहीं है इस शहर मेंउदासी के इस नमूने के लिए
:::'''6
हमने सब कुछ किया उनके लिए जिनका घुटता था दम
सब कुछ किया उनके लिए जो माँगते थे हवा
रात पर बनाई खिड़कियाँ
खुली रहतीं जो अस्पताल भर
इन शिकायतों के शोर से रहें दूर चलो
:::'''7
एक मुस्कुराहट से नहीं सुन्दर कुछ भी
और बदसूरत चेहरे के बावजूद
तुझे चिंता क्यों नहीं सुन्दर होने की
 
:::'''8
ले जाओ कहीं और यह घायल पाँव
 
:::'''9
जैसे तुम्हारे पास कारण था निगाहें फेर लेने का
उसकी ओर से जो है रक्त-रंजित
 
'''10
 
सब कुछ ठीक-ठीक है अपनी जगह
या कम से कम सब कुछ वहाँ है तो
 
:::'''11
झूठे
धोले अपने फैले हुए हाथ
 
:::'''12
जो कहता है मुझे तकलीफ़ है
भूल जाता है दूसरों को
 
:::'''13
काफी नहीं है चुप हो जाना
जानना होगा दूसरी बातें कहना
 
:::'''14
अभिशप्त है वह पौधा
ऑंख जिस पर टिके नहीं
क्या अधिकार उस कवि को
रहने का जो कभी खिले नहीं
 
:::'''15
नहीं है यह —
कि थोड़ा सा —
मत बनाओ चहरे
रोते हुए जिन्हें कोई —
केवल अपराध है _-
 
:::'''16
मैं बोलता हूँ इस तरह उनके लिए सो नहीं पाते जो
अकेले नहीं पड़ते वह गर मैं उन्हें __ हूँ
मैं बोलता हूँ इस तरह उनके लिए मरने में कष्ट पाते जो
फिर क्यों कहते हो कि मुझमें है अहँकार
 
:::'''17
जीवन है फाँसों से भरा
फिर भी जीवन है वह
 
:::'''18
और यह अच्छा ही होता है
रात कभी-कभी रो लें अगर
 
 
:::'''19
एक बार फिर आईना और तू
वहाँ हैं मरे हुए बच्चों की ऑंखें
 
:::'''20
क्या तुझे शर्म का मालूम है नाम
 
:::'''21
करें कोशिश रखने की हिन्दी की कविता में
खंजर सा यह शब्द साकियत-सीदी-युसुफ़
 
ऐशार्द के कुछ अंश, लेज़ादिय (1982) से
'''मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी
</poem>
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