Changes

पावस रितु बृन्दावनकी / बिहारी

25 bytes added, 05:51, 28 दिसम्बर 2009
|रचनाकार=बिहारी
|संग्रह=
}}{{KKCatKavita}}<poem>
पावस रितु बृन्दावनकी दुति दिन-दिन दूनी दरसै है।
छबि सरसै है लूमझूम यो सावन घन घन बरसै है॥१॥
(रसिक) बिहारीजी रो भीज्यो पीतांबर प्यारीजी री चूनर सारी है।
सुखकारी है, कुंजाँ झूल रह्या पिय प्यारी है॥४॥
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,395
edits