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"रिश्तों की खातिर / भावना कुँअर" के अवतरणों में अंतर

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बहुत दुखी हूँ मैं
 
बहुत दुखी हूँ मैं
 
 
इन रिश्ते नातों से
 
इन रिश्ते नातों से
 
 
जो हर बार ही दे जाते हैं-
 
जो हर बार ही दे जाते हैं-
 
 
असहनीय दुःख,
 
असहनीय दुःख,
 
 
रिसती हुई पीडा,
 
रिसती हुई पीडा,
 
 
टूटते हुए सपने,
 
टूटते हुए सपने,
 
 
अनवरत बहते अश्क
 
अनवरत बहते अश्क
 
 
और मैंने---
 
और मैंने---
 
 
मैंने खुद को मिटाया है
 
मैंने खुद को मिटाया है
 
 
इन रिश्तों की खातिर।
 
इन रिश्तों की खातिर।
 
 
पर इन्होंने सिर्फ--
 
पर इन्होंने सिर्फ--
 
 
कुचला है मेरी भावनाओं को,
 
कुचला है मेरी भावनाओं को,
 
 
रौंद डाला है मेरे अस्तित्व को,
 
रौंद डाला है मेरे अस्तित्व को,
 
 
छलनी कर डाला है मेरे दिल को।
 
छलनी कर डाला है मेरे दिल को।
 
 
लेकन ये मेरा दिल है कोई पत्थर नहीं---
 
लेकन ये मेरा दिल है कोई पत्थर नहीं---
 
 
अनेक भावनाओं से भरा दिल
 
अनेक भावनाओं से भरा दिल
 
 
इसमें प्यार का झरना बहता है,
 
इसमें प्यार का झरना बहता है,
 
 
सबके दुःखों से निरन्तर रोता है,
 
सबके दुःखों से निरन्तर रोता है,
 
 
बिलखता है, सिसकता है
 
बिलखता है, सिसकता है
 
 
और उनको खुशी मिले
 
और उनको खुशी मिले
 
 
हरदम यही दुआ करता है।
 
हरदम यही दुआ करता है।
 
 
पर उनका दिल ,दिल नही
 
पर उनका दिल ,दिल नही
 
 
पत्थरों का एक शहर है
 
पत्थरों का एक शहर है
 
 
जिसमें कोई भावनाएं नही
 
जिसमें कोई भावनाएं नही
 
 
बस वो तो तटस्थ खडा है
 
बस वो तो तटस्थ खडा है
 
 
पर्वत की तरह
 
पर्वत की तरह
 
 
उनके दामन को बहारों से भर दो
 
उनके दामन को बहारों से भर दो
 
 
तो भी उनको कोई फर्क नहीं पडता।
 
तो भी उनको कोई फर्क नहीं पडता।
 
 
मैं हर बार हार जाती हूँ इन रिश्तों से
 
मैं हर बार हार जाती हूँ इन रिश्तों से
 
 
पर,फिर भी हताश नहीं होती
 
पर,फिर भी हताश नहीं होती
 
 
फिर लग जाती हूँ इनको निभाने में
 
फिर लग जाती हूँ इनको निभाने में
 
 
इस उम्मीद से कि कभी तो सवेरा होगा
 
इस उम्मीद से कि कभी तो सवेरा होगा
 
 
कभी तो ये पत्थरों का शहर
 
कभी तो ये पत्थरों का शहर
 
 
भावनाओं का शहर होगा
 
भावनाओं का शहर होगा
 
 
जिसमें मेरे लिए भी
 
जिसमें मेरे लिए भी
 
 
अदना सा ही सही
 
अदना सा ही सही
 
 
पर इक मकां होगा।
 
पर इक मकां होगा।
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14:40, 29 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

बहुत दुखी हूँ मैं
इन रिश्ते नातों से
जो हर बार ही दे जाते हैं-
असहनीय दुःख,
रिसती हुई पीडा,
टूटते हुए सपने,
अनवरत बहते अश्क
और मैंने---
मैंने खुद को मिटाया है
इन रिश्तों की खातिर।
पर इन्होंने सिर्फ--
कुचला है मेरी भावनाओं को,
रौंद डाला है मेरे अस्तित्व को,
छलनी कर डाला है मेरे दिल को।
लेकन ये मेरा दिल है कोई पत्थर नहीं---
अनेक भावनाओं से भरा दिल
इसमें प्यार का झरना बहता है,
सबके दुःखों से निरन्तर रोता है,
बिलखता है, सिसकता है
और उनको खुशी मिले
हरदम यही दुआ करता है।
पर उनका दिल ,दिल नही
पत्थरों का एक शहर है
जिसमें कोई भावनाएं नही
बस वो तो तटस्थ खडा है
पर्वत की तरह
उनके दामन को बहारों से भर दो
तो भी उनको कोई फर्क नहीं पडता।
मैं हर बार हार जाती हूँ इन रिश्तों से
पर,फिर भी हताश नहीं होती
फिर लग जाती हूँ इनको निभाने में
इस उम्मीद से कि कभी तो सवेरा होगा
कभी तो ये पत्थरों का शहर
भावनाओं का शहर होगा
जिसमें मेरे लिए भी
अदना सा ही सही
पर इक मकां होगा।