भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"निवेदन / संतरण / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=संतरण / महेन्द्र भटनागर }} फूल ...)
 
छो (निवेदन (संतरण) / महेन्द्र भटनागर का नाम बदलकर निवेदन / संतरण / महेन्द्र भटनागर कर दिया गया है)
(कोई अंतर नहीं)

14:45, 30 दिसम्बर 2009 का अवतरण

फूल जो मुरझा रहे
जग-वल्लरी पर

अधखिले

कारण उसी का खोजता हूँ !

हे प्राण !
मुझको माफ़ करना
यदि तुम्हारे गीत कुछ दिन
मैं न गाऊँ !
स्वर्ण आभा-सा
सुवासित तन तुम्हारा देख
अनदेखा करूँ,
छवि पर न मोहित हो
तनिक भी मुसकराऊँ !

फूल जब मुरझा रहे
वसुधा बनी विधवा
सुमुखि !
फिर अर्थ क्या शृंगार का,
पग-नूपुरों की गूँजती झंकार का ?

हर फूल खिलने दो ज़रा,
डालियों पर प्यार हिलने दो ज़रा !