भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दुनिया - २ / केशव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) |
|||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=ओ पवित्र नदी / केशव | |संग्रह=ओ पवित्र नदी / केशव | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
तुमसे जुड़कर मैं | तुमसे जुड़कर मैं | ||
पंक्ति 26: | पंक्ति 27: | ||
जो तेज़ से तेज़ हथियार के सामने भी | जो तेज़ से तेज़ हथियार के सामने भी | ||
खड़ा रहता है | खड़ा रहता है | ||
− | + | ::निडर | |
जिसकी अदृष्य उंगली थामकर | जिसकी अदृष्य उंगली थामकर | ||
अँधेरे के घने वृक्ष में | अँधेरे के घने वृक्ष में | ||
पंक्ति 35: | पंक्ति 36: | ||
खुद को | खुद को | ||
सबसे बाँट लेता हूँ | सबसे बाँट लेता हूँ | ||
− | |||
</poem> | </poem> |
16:51, 1 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
तुमसे जुड़कर मैं
आँधी का रुख
अपनी ओर मोड़ लेता हूँ
तुमसे अलग होकर
खुद को
शुद स्ए जोड़ लेता हूँ
इस सिलसिले की मुँडेर पर बैठ
नहीं देख सका मैं
अपने कद से ऊपर
किसी फुनगी पर बैठी
अकेली चिड़िया तक को
फिर भी कैसे
अकेलेपन के काँच को
भीतर होने वाली
हल्की सी आहट से तोड़ लेता हूँ
कहीं कुछ है
जो तेज़ से तेज़ हथियार के सामने भी
खड़ा रहता है
निडर
जिसकी अदृष्य उंगली थामकर
अँधेरे के घने वृक्ष में
रंग बदलती के पत्ती को
पहचान लेता हूँ
और अपने नाटे दुःख के
तम्बू से निकलकर
खुद को
सबसे बाँट लेता हूँ