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− | अँधेरा दूर होता है, नयी आभा दमकती है ! | + | <poem> |
− | अथक जन-शक्ति के तूफ़ान छाये आसमानों पर | + | दमन के बादलों को चीर अब बिजली चमकती है, |
− | कि गहरी धूल के कम्बल दिशाएँ ओढ़ती डर कर ! | + | अँधेरा दूर होता है, नयी आभा दमकती है ! |
+ | अथक जन-शक्ति के तूफ़ान छाये आसमानों पर | ||
+ | कि गहरी धूल के कम्बल दिशाएँ ओढ़ती डर कर ! | ||
− | सदा विद्रोह होता है, ज़माना जब बदलता है, | + | सदा विद्रोह होता है, ज़माना जब बदलता है, |
− | नया संसार आता है, पुराना जीर्ण जलता है, | + | नया संसार आता है, पुराना जीर्ण जलता है, |
− | न हिम्मत हारता इन्सान चाहे मौत मँडराये | + | न हिम्मत हारता इन्सान चाहे मौत मँडराये |
− | हज़ारों ज़िन्दगी के गीत उसने शान से गाये ! | + | हज़ारों ज़िन्दगी के गीत उसने शान से गाये ! |
− | भरे उत्साह, दुर्दम शक्ति, जीवन-वेग-नव दुर्धर | + | भरे उत्साह, दुर्दम शक्ति, जीवन-वेग-नव दुर्धर |
− | नया इंसान पैदा हो गया है आज धरती पर, | + | नया इंसान पैदा हो गया है आज धरती पर, |
− | कि जिसके सामने प्रतिरोध आकर टूट जाता है, | + | कि जिसके सामने प्रतिरोध आकर टूट जाता है, |
− | अनल जिसको बड़ा गहरा प्रबल सागर बताता है ! | + | अनल जिसको बड़ा गहरा प्रबल सागर बताता है ! |
− | चुनौती दे रहा वह भाग्य के निश्चित सितारों को, | + | चुनौती दे रहा वह भाग्य के निश्चित सितारों को, |
− | बनाया जा रहा फिर से सभी युग भग्न-तारों को, | + | बनाया जा रहा फिर से सभी युग भग्न-तारों को, |
− | नया मनु बल समाया यांग्त्सी की स्वस्थ घाटी में | + | नया मनु बल समाया यांग्त्सी की स्वस्थ घाटी में |
− | नयी बस्ती बसी पीली पुरानी मूक माटी में ! | + | नयी बस्ती बसी पीली पुरानी मूक माटी में ! |
− | सुरंगें उड़ रहीं साम्राज्य शाहों ने बिछायीं जो, | + | सुरंगें उड़ रहीं साम्राज्य शाहों ने बिछायीं जो, |
− | धसकती जा रही दीवार डॉलर ने उठायी जो, | + | धसकती जा रही दीवार डॉलर ने उठायी जो, |
− | मिटेगा नस्ल का सिद्धान्त भी प्रत्येक कोने से | + | मिटेगा नस्ल का सिद्धान्त भी प्रत्येक कोने से |
− | टिकेगा अब नहीं उद्जन-बमों की फ़स्ल बोने से !< | + | टिकेगा अब नहीं उद्जन-बमों की फ़स्ल बोने से ! |
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17:34, 1 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
दमन के बादलों को चीर अब बिजली चमकती है,
अँधेरा दूर होता है, नयी आभा दमकती है !
अथक जन-शक्ति के तूफ़ान छाये आसमानों पर
कि गहरी धूल के कम्बल दिशाएँ ओढ़ती डर कर !
सदा विद्रोह होता है, ज़माना जब बदलता है,
नया संसार आता है, पुराना जीर्ण जलता है,
न हिम्मत हारता इन्सान चाहे मौत मँडराये
हज़ारों ज़िन्दगी के गीत उसने शान से गाये !
भरे उत्साह, दुर्दम शक्ति, जीवन-वेग-नव दुर्धर
नया इंसान पैदा हो गया है आज धरती पर,
कि जिसके सामने प्रतिरोध आकर टूट जाता है,
अनल जिसको बड़ा गहरा प्रबल सागर बताता है !
चुनौती दे रहा वह भाग्य के निश्चित सितारों को,
बनाया जा रहा फिर से सभी युग भग्न-तारों को,
नया मनु बल समाया यांग्त्सी की स्वस्थ घाटी में
नयी बस्ती बसी पीली पुरानी मूक माटी में !
सुरंगें उड़ रहीं साम्राज्य शाहों ने बिछायीं जो,
धसकती जा रही दीवार डॉलर ने उठायी जो,
मिटेगा नस्ल का सिद्धान्त भी प्रत्येक कोने से
टिकेगा अब नहीं उद्जन-बमों की फ़स्ल बोने से !