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"फूल और उम्मीद / गोरख पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर

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कारीगर के कटे हाथ
 
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सच पर कटी ज़ुबानें चीखती हैं हमारी यादों में
 
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हमारी यादों में तड़पता है
 
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दीवारों में चिना हुआ
 
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भरे हैं हमारे अनुभव।
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यहीं पर
 
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एक बूढ़ा माली
 
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हमारे मृत्युग्रस्त सपनों में
 
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(रचनाकाल : 1980)
 
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22:02, 1 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

हमारी यादों में छटपटाते हैं
कारीगर के कटे हाथ
सच पर कटी ज़ुबानें चीखती हैं हमारी यादों में
हमारी यादों में तड़पता है
दीवारों में चिना हुआ
प्यार।

अत्याचारी के साथ लगातार
होने वाली मुठभेड़ों से
भरे हैं हमारे अनुभव।

यहीं पर
एक बूढ़ा माली
हमारे मृत्युग्रस्त सपनों में
फूल और उम्मीद
रख जाता है।

(रचनाकाल : 1980)