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"रीढ़ की हड्डियां / पंकज सुबीर" के अवतरणों में अंतर
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टेक चुके हैं सब अपने घुटनों को | टेक चुके हैं सब अपने घुटनों को |
23:10, 1 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
टेक चुके हैं सब अपने घुटनों को
उठा हुआ नहीं आता नज़र
अब कोई भी सिर
रेहन रख दी गईं हैं
लगभग सारी की सारी हड्डियां रीढ़ की
और इसीलिये चल रहा है
सब कुछ ठीक ठाक
वैसा ही जैसा चाहते हैं
वे