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|संग्रह=एक बूंद का बादल / ध्रुव शुक्ल
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<Poem>
 माँ रो रही है शान्तनु !
वह मानती ही नहीं कि तुम नहीं हो
उसे हम दिलासा नहीं दे पा रहे
आँसुओं के पानी में बही चली जा रही
हमारी ही बोली होंठों पर आकर
न जाने क्यों सूख जाती है शान्तनु !
</poem>
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