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* [[ऐसे बने रघुनाथ कहै हरि काम कला छबि के निधि गारे / रघुनाथ]] | * [[ऐसे बने रघुनाथ कहै हरि काम कला छबि के निधि गारे / रघुनाथ]] |
12:47, 2 जनवरी 2010 का अवतरण
रघुनाथ
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जन्म | |
---|---|
निधन | 1770 |
जन्म स्थान | |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
रसिक-मोहन, जगत-मोहन, काव्य-कलाधर, इश्क महोत्सव। | |
विविध | |
रीतिकाल के कवि | |
जीवन परिचय | |
रघुनाथ / परिचय |
- याहि मत जानौ है सहज कहै रघुनाथ / रघुनाथ
- मेघ जहाँ तहाँ दामिनी है अरु दीप जहाँ तहाँ जोति है भातेँ / रघुनाथ
- लखो अपनी अँखियांन सोँ मैँ जमुना तट आजु अन्हात मे भोर / रघुनाथ
- ऐसे बने रघुनाथ कहै हरि काम कला छबि के निधि गारे / रघुनाथ
- गावत बाँदर बैठ्यो निकुञ्ज मेँ ताल समेत मैँ आंखिन पेखे / रघुनाथ
- बहु नायक हौ सब लायक हौ सब प्यारिन के रस को लहिये / रघुनाथ
- औधि आधी रात की दै आपनो बतायो गेह / रघुनाथ
- देखिबे को दुति, पूनो के चंद की / रघुनाथ
- देखिए देखि या ग्वारि गँवारि की / रघुनाथ
- ऐसे बने 'रघुनाथ कहै हरि / रघुनाथ
- दै कहि बीर! सिकारिन को / रघुनाथ
- केसरि सों पहिले उबटयो ऍंग / रघुनाथ
- बातैं लगाय सखान तें न्यारो कै / रघुनाथ
- ग्वाल संग जैबो ब्रज गायन चरेबो ऐबो / रघुनाथ
- फूलि उठे कमल से अमल हितू के नैन / रघुनाथ
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