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08:03, 2 जनवरी 2010
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
<td rowspan=2> <font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td> '''शीर्षक: '''पहले की तरहमध्य निशा का गीत<br> '''रचनाकार:''' [[अनिल जनविजयनरेन्द्र शर्मा]]</td>
</tr>
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पहुँच अचानक उस ने मेरे घर परलाड़ भरे तुम उसे उर से लगा स्वर में कहा ठहर कर"अरे... सबसाधतीं--कुछ पहले जैसा हैसब वैसा का वैसा है...पहले की तरह..."
फिर शांत नज़र से उस ने मुझे घूरालेकिन कहीं कुछ रह गया अधूराउठते सिसकते स्वर तुम्हारे मधुर बेला के!
उदास नज़र से मैं ने उसे ताका मूक होती कथा मेरी,फिर उस की आँखों में झाँका शून्य होती व्यथा मेरी, चीर निशि-निस्तब्धता जो,
मुस्काई वह, फिर चहकी चिड़ियातीर-सीहँसी ज़ोर से किसी बहकी गुड़िया-सीआते सिसकते स्वर तुम्हारे मधुर बेला के!
चूमा उस ने मुझे चाँद भी पिछले पहर का, फिर सिर को दिया खमबरसों मुग्ध हो जाता, ठहराता! क्या विदा-बेला न टलती यदि कहीं आते सिसकते स्वर तुम्हारे मधुर बेला के बाद इस तरह मिले हम?पहले बनी रहती चाँदनी भी गगन की तरहहीरक-कनी भी ओस बन आती अवनि पर चाँदनी, सुनकर सिसकते स्वर तुम्हारे मधुर बेला के? रुद्ध प्राणों को रुलाते, आज बाहर खींच लाते निमिष में अंगार उर-सा सूर्य, यदि आते सिसकते स्वर तुम्हारे मधुर बेला के?</pre>
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