भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जिजीविषु / संवर्त / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=संवर्त / महेन्द्र भटनागर }} गहर...) |
छो (जिजीविषु (संवर्त) / महेन्द्र भटनागर का नाम बदलकर जिजीविषु / संवर्त / महेन्द्र भटनागर कर दिया गया है) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:13, 2 जनवरी 2010 का अवतरण
गहरा अँधेरा
साँय....साँय पवन,
भवावह शाप-सा
छाया गगन,
अति शीत के क्षण !
पर,
जियो इस आस पर —
शायद कि कोई
एक दिन
बाले रवि-किरण-सा
राग-रंजित
हेम मंगल-दीप !
सुनसान पथ पर
मूक एकाकी हृदय तुम,
भारवत् तन
व्यर्थ जीवन !
पर, चलो इस आस पर —
शायद किसी क्षण
चिर-प्रतीक्षित
अजनबी के
चरण निःसृत कर उठें संगीत !
खो गया मधुमास,
पतझर मात्र पतझर ;
फूल बदले शूल में
सपने गये सन धूल में !
ओ आत्महंता !
द्वार-वातायन करो मत बंद,
शायद —
समदुखी कोई
भटकती ज़िन्दगी आ
कक्ष को रँग दे
सुना स्वर्गिक सुधाधर गीत !