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"जिजीविषु / संवर्त / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर
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− | साँय....साँय पवन, | + | <poem> |
− | भवावह शाप-सा | + | गहरा अँधेरा |
− | छाया गगन, | + | साँय....साँय पवन, |
− | अति शीत के क्षण ! | + | भवावह शाप-सा |
+ | छाया गगन, | ||
+ | अति शीत के क्षण! | ||
− | पर, | + | पर, जियो इस आस पर — |
− | शायद कि कोई | + | शायद कि कोई |
− | एक दिन | + | एक दिन |
− | बाले रवि-किरण-सा | + | बाले रवि-किरण-सा |
− | राग-रंजित | + | राग-रंजित |
− | हेम मंगल-दीप ! | + | हेम मंगल-दीप! |
− | सुनसान पथ पर | + | सुनसान पथ पर |
− | मूक एकाकी हृदय तुम, | + | मूक एकाकी हृदय तुम, |
− | भारवत् तन | + | भारवत् तन |
− | व्यर्थ जीवन ! | + | व्यर्थ जीवन! |
− | पर, चलो इस आस पर — | + | पर, चलो इस आस पर — |
− | शायद किसी क्षण | + | शायद किसी क्षण |
− | चिर-प्रतीक्षित | + | चिर-प्रतीक्षित |
− | अजनबी के | + | अजनबी के |
− | चरण निःसृत कर उठें संगीत ! | + | चरण निःसृत कर उठें संगीत! |
− | खो गया मधुमास, | + | खो गया मधुमास, |
− | पतझर मात्र पतझर ; | + | पतझर मात्र पतझर; |
− | फूल बदले शूल में | + | फूल बदले शूल में |
− | सपने गये सन धूल में ! | + | सपने गये सन धूल में! |
− | ओ आत्महंता ! | + | ओ आत्महंता! |
− | द्वार-वातायन करो मत बंद, | + | द्वार-वातायन करो मत बंद, |
− | शायद — | + | शायद — |
− | समदुखी कोई | + | समदुखी कोई |
− | भटकती ज़िन्दगी आ | + | भटकती ज़िन्दगी आ |
− | कक्ष को रँग दे | + | कक्ष को रँग दे |
− | सुना स्वर्गिक सुधाधर गीत !< | + | सुना स्वर्गिक सुधाधर गीत! |
+ | </poem> |
14:17, 2 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
गहरा अँधेरा
साँय....साँय पवन,
भवावह शाप-सा
छाया गगन,
अति शीत के क्षण!
पर, जियो इस आस पर —
शायद कि कोई
एक दिन
बाले रवि-किरण-सा
राग-रंजित
हेम मंगल-दीप!
सुनसान पथ पर
मूक एकाकी हृदय तुम,
भारवत् तन
व्यर्थ जीवन!
पर, चलो इस आस पर —
शायद किसी क्षण
चिर-प्रतीक्षित
अजनबी के
चरण निःसृत कर उठें संगीत!
खो गया मधुमास,
पतझर मात्र पतझर;
फूल बदले शूल में
सपने गये सन धूल में!
ओ आत्महंता!
द्वार-वातायन करो मत बंद,
शायद —
समदुखी कोई
भटकती ज़िन्दगी आ
कक्ष को रँग दे
सुना स्वर्गिक सुधाधर गीत!