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"आशा / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर

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सारी आशाएँ न पूर्ण यदि होती हों,
 
सारी आशाएँ न पूर्ण यदि होती हों,
 
तब भी अंचल छोड़ नहीं आशाओं के।
 
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::(२)
 
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मर गया होता कभी का
 
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::"घूँट यह पी लो कि संकट जा रहा है।
 
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::आज से अच्छा दिवस कल आ रहा है"।
 
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::(३)
 
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सभी दुखों की एक महौषधि धीरज है,
 
सभी दुखों की एक महौषधि धीरज है,
 
सभी आपदाओं की एक तरी आशा।
 
सभी आपदाओं की एक तरी आशा।
 
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16:24, 2 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

(१)
सारी आशाएँ न पूर्ण यदि होती हों,
तब भी अंचल छोड़ नहीं आशाओं के।
(२)
मर गया होता कभी का
आपदाओं की कठिनतम मार से,
यदि नहीं आशा श्रवण में
नित्य यह संदेश देती प्यार से--
"घूँट यह पी लो कि संकट जा रहा है।
आज से अच्छा दिवस कल आ रहा है"।
(३)
सभी दुखों की एक महौषधि धीरज है,
सभी आपदाओं की एक तरी आशा।