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लेखक: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]{{KKCatKavita}}<poem>अभी न होगा मेरा अन्त
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*अभी-अभी ही तो आया है मेरे वन में मृदुल वसन्त- अभी न होगा मेरा अन्त
<PRE>हरे-हरे ये पात, अभी न होगा मेरा अन्तडालियाँ, कलियाँ कोमल गात!
अभी-अभी मैं ही तो आया हैमेरे वन में अपना स्वप्न-मृदुल वसन्त-कर फेरूँगा निद्रित कलियों पर अभी न होगा मेरा अन्तजगा एक प्रत्यूष मनोहर
हरेपुष्प-हरे ये पातपुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,डालियाँअपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं, कलियाँ कोमल गात!
मैं ही अपना स्वप्नद्वार दिखा दूँगा फिर उनको है मेरे वे जहाँ अनन्त-मृदुल-करफेरूँगा निद्रित कलियों परजगा एक प्रत्यूष मनोहरअभी न होगा मेरा अन्त।
पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैंमेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण,अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैंइसमें कहाँ मृत्यु? है जीवन ही जीवन अभी पड़ा है आगे सारा यौवन स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन,
द्वार दिखा दूँगा फिर उनकोहै मेरे वे जहाँ अनन्त-अभी न होगा मेरा अन्त। मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण,इसमें कहाँ मृत्यु?है जीवन ही जीवनअभी पड़ा है आगे सारा यौवनस्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन, मेरे ही अविकसित राग सेविकसित होगा बन्धु, दिगन्त;अभी न होगा मेरा अन्त।  </PREpoem>
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