भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शासक के प्रति / जय गोस्वामी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जय गोस्वामी |संग्रह= }} <Poem> आप जो-जो कहेंगे, मैं बि...)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita‎}}
 
<Poem>
 
<Poem>
 
आप जो-जो कहेंगे,
 
आप जो-जो कहेंगे,
मैं बिल्कुल वही-वही करूंगा!
+
मैं बिल्कुल वही-वही करूँगा!
वही-वही खाऊंगा, वही-वही पहनूंगा
+
वही-वही खाऊँगा, वही-वही पहनूँगा
 
वही-वही लगाकर,
 
वही-वही लगाकर,
निकलूंगा सैर को!
+
निकलूँगा सैर को!
छोड़ दूंगा, अपनी निजी ज़मीन भी
+
छोड़ दूँगा, अपनी निजी ज़मीन भी
और चला जाऊंगा 'टूं' भी किए बिना!
+
और चला जाऊँगा 'टूं' भी किए बिना!
  
 
अगर आप कहेंगे,
 
अगर आप कहेंगे,
 
गले में रस्सी डालकर
 
गले में रस्सी डालकर
झूलते रहो सारी रात-- वही करूंगा!
+
झूलते रहो सारी रात-- वही करूँगा!
 
लेकिन, अगले दिन, जब आप हुक्म देंगे,
 
लेकिन, अगले दिन, जब आप हुक्म देंगे,
 
आओ, अब उतर आओ!
 
आओ, अब उतर आओ!
 
तब मुझे उतारने के लिए,
 
तब मुझे उतारने के लिए,
 
आपको और लोगों की ज़रूरत पड़ेगी,
 
आपको और लोगों की ज़रूरत पड़ेगी,
मैं उतर नहीं पाऊंगा, अपने आप, अकेले!
+
मैं उतर नहीं पाऊँगा, अपने आप, अकेले!
  
 
आपसे निवेदन है,
 
आपसे निवेदन है,

20:30, 2 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

आप जो-जो कहेंगे,
मैं बिल्कुल वही-वही करूँगा!
वही-वही खाऊँगा, वही-वही पहनूँगा
वही-वही लगाकर,
निकलूँगा सैर को!
छोड़ दूँगा, अपनी निजी ज़मीन भी
और चला जाऊँगा 'टूं' भी किए बिना!

अगर आप कहेंगे,
गले में रस्सी डालकर
झूलते रहो सारी रात-- वही करूँगा!
लेकिन, अगले दिन, जब आप हुक्म देंगे,
आओ, अब उतर आओ!
तब मुझे उतारने के लिए,
आपको और लोगों की ज़रूरत पड़ेगी,
मैं उतर नहीं पाऊँगा, अपने आप, अकेले!

आपसे निवेदन है,
मेरी इतनी-सी अक्षमता पर,
कृपया ध्यान न दें!

बांग्ला से अनुवाद : सुशील गुप्ता