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"हादसा-दर-हादसा / अश्वघोष" के अवतरणों में अंतर
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मेरी आँखों में धुआँ है और कानों में है शोर | मेरी आँखों में धुआँ है और कानों में है शोर | ||
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एक दरिया कल मिला था राजधानी में हमें | एक दरिया कल मिला था राजधानी में हमें |
11:35, 3 जनवरी 2010 का अवतरण
हादसा-दर-हादसा-दर-हादसा होता हुआ
क्या कभी देखा किसी ने आसमाँ रोता हुआ
ये ज़मीं प्यासी है फिर भी जानकर अनजान-सा
हुक्मरा-सा एक बादल रह गया सोता हुआ
मेरी आँखों में धुआँ है और कानों में है शोर
सोच की बैसाखियों पर ज़िस्म को ढोता हुआ
एक दरिया कल मिला था राजधानी में हमें
आदमी के खून से अपना बदन धोता हुआ
चल रहा हूँ जानकर भी अजनबी है सब यहाँ
प्यार की हसरत में एक पहचान को बोता हुआ