भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कौवे-2 / नरेश सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश सक्सेना |संग्रह=समुद्र पर हो रही है बारिश / नरेश सक...)
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=समुद्र पर हो रही है बारिश / नरेश सक्सेना
 
|संग्रह=समुद्र पर हो रही है बारिश / नरेश सक्सेना
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
बत्तखों से कम कर्कश  
 
बत्तखों से कम कर्कश  
 
 
और कोयलों से कम चालाक बल्कि भोले माने जाते कौवे  
 
और कोयलों से कम चालाक बल्कि भोले माने जाते कौवे  
 
 
बशर्ते वे किसी और रंग के होते  
 
बशर्ते वे किसी और रंग के होते  
 
 
मगर वे काले होते हैं बस यहीं से होती है उनके दुखों की शुरूआत  
 
मगर वे काले होते हैं बस यहीं से होती है उनके दुखों की शुरूआत  
 
 
गोरी जातियों से पराजित हमारा अतीत  
 
गोरी जातियों से पराजित हमारा अतीत  
 
 
कौवों का पीछा नहीं छोड़ता  
 
कौवों का पीछा नहीं छोड़ता  
 
 
एक दिन एक मरे हुए कौवे को घेरकर  
 
एक दिन एक मरे हुए कौवे को घेरकर  
 
  
 
जब वे बैठे रहे और अंधेरा होने तक काँव-काँव करते रहे  
 
जब वे बैठे रहे और अंधेरा होने तक काँव-काँव करते रहे  
 
 
तब समझ में आया
 
तब समझ में आया
 
 
कि यह तो उनके निरंतर शोक की आवाज़ है  
 
कि यह तो उनके निरंतर शोक की आवाज़ है  
 
 
जिसे हम संगीत की तरह सुनना चाहते हैं  
 
जिसे हम संगीत की तरह सुनना चाहते हैं  
 
  
 
निरंतर धिक्कार और तिरस्कार के बावजूद  
 
निरंतर धिक्कार और तिरस्कार के बावजूद  
 
 
बस्तियाँ छोड़कर नहीं जाते  
 
बस्तियाँ छोड़कर नहीं जाते  
 
 
अपने भर्राए गलों से न जाने क्या कहते रहते हैं !
 
अपने भर्राए गलों से न जाने क्या कहते रहते हैं !
 +
</poem>

10:57, 5 जनवरी 2010 का अवतरण

KKGlobal}}

बत्तखों से कम कर्कश
और कोयलों से कम चालाक बल्कि भोले माने जाते कौवे
बशर्ते वे किसी और रंग के होते
मगर वे काले होते हैं बस यहीं से होती है उनके दुखों की शुरूआत
गोरी जातियों से पराजित हमारा अतीत
कौवों का पीछा नहीं छोड़ता
एक दिन एक मरे हुए कौवे को घेरकर

जब वे बैठे रहे और अंधेरा होने तक काँव-काँव करते रहे
तब समझ में आया
कि यह तो उनके निरंतर शोक की आवाज़ है
जिसे हम संगीत की तरह सुनना चाहते हैं

निरंतर धिक्कार और तिरस्कार के बावजूद
बस्तियाँ छोड़कर नहीं जाते
अपने भर्राए गलों से न जाने क्या कहते रहते हैं !