Changes

कौवे-2 / नरेश सक्सेना

19 bytes added, 05:28, 5 जनवरी 2010
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नरेश सक्सेना
|संग्रह=समुद्र पर हो रही है बारिश / नरेश सक्सेना
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
बत्तखों से कम कर्कश
 
और कोयलों से कम चालाक बल्कि भोले माने जाते कौवे
 
बशर्ते वे किसी और रंग के होते
 
मगर वे काले होते हैं बस यहीं से होती है उनके दुखों की शुरूआत
 
गोरी जातियों से पराजित हमारा अतीत
 
कौवों का पीछा नहीं छोड़ता
 
एक दिन एक मरे हुए कौवे को घेरकर
 
जब वे बैठे रहे और अंधेरा होने तक काँव-काँव करते रहे
 
तब समझ में आया
 
कि यह तो उनके निरंतर शोक की आवाज़ है
 
जिसे हम संगीत की तरह सुनना चाहते हैं
 
निरंतर धिक्कार और तिरस्कार के बावजूद
 
बस्तियाँ छोड़कर नहीं जाते
 
अपने भर्राए गलों से न जाने क्या कहते रहते हैं !
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits