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Kavita Kosh से
गरजते शेर आये, सामने फिर भेड़िये आये,
नखों को तजतेज, दाँतों को बहुत तीखा किये आये।
मगर, परवाह क्या? हो जा खड़ा तू तानकर उसको,
छिपी जो हड्डियों में आग-सी तलवार है साथी।