भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कबित्त (कवित्त) / इब्ने इंशा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} रचनाकार: इब्ने इंशा Category:कविताएँ Category:इब्ने इंशा ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ (ए...) |
|||
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
− | रचनाकार | + | {{KKRachna |
− | + | |रचनाकार=इब्ने इंशा | |
− | + | }} | |
− | + | {{KKCatKavitt}} | |
− | + | <poem> | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
(एक) | (एक) | ||
− | |||
जले तो जलाओ गोरी,पीत का अलाव गोरी | जले तो जलाओ गोरी,पीत का अलाव गोरी | ||
− | |||
अभी न बुझाओ गोरी, अभी से बुझाओ ना । | अभी न बुझाओ गोरी, अभी से बुझाओ ना । | ||
− | |||
पीत में बिजोग भी है, कामना का सोग भी है | पीत में बिजोग भी है, कामना का सोग भी है | ||
− | |||
पीत बुरा रोग भी है, लगे तो लगाओ ना ।। | पीत बुरा रोग भी है, लगे तो लगाओ ना ।। | ||
− | |||
गेसुओं की नागिनों से, बैरिनों अभागिनों से | गेसुओं की नागिनों से, बैरिनों अभागिनों से | ||
− | |||
जोगिनों बिरागिनों से, खेलती ही जाओ ना । | जोगिनों बिरागिनों से, खेलती ही जाओ ना । | ||
− | |||
आशिकों का हाल पूछो, करो तो ख़याल- पूछो | आशिकों का हाल पूछो, करो तो ख़याल- पूछो | ||
− | |||
एक-दो सवाल पूछो, बात जो बढ़ाओ ना ।। | एक-दो सवाल पूछो, बात जो बढ़ाओ ना ।। | ||
− | |||
(दो) | (दो) | ||
− | |||
रात को उदास देखें, चांद को निरास देखें | रात को उदास देखें, चांद को निरास देखें | ||
− | |||
तुम्हें न जो पास देखें, आओ पास आओ ना । | तुम्हें न जो पास देखें, आओ पास आओ ना । | ||
− | |||
रूप-रंग मान दे दें, जी का ये मकान दे दें | रूप-रंग मान दे दें, जी का ये मकान दे दें | ||
− | |||
कहो तुम्हें जान दे दें, मांग लो लजाओ ना ।। | कहो तुम्हें जान दे दें, मांग लो लजाओ ना ।। | ||
− | |||
और भी हज़ार होंगे, जो कि दावेदार होंगे | और भी हज़ार होंगे, जो कि दावेदार होंगे | ||
− | |||
आप पे निसार होंगे, कभी आज़माओ ना । | आप पे निसार होंगे, कभी आज़माओ ना । | ||
− | |||
शे'र में 'नज़ीर' ठहरे, जोग में 'कबीर' ठहरे | शे'र में 'नज़ीर' ठहरे, जोग में 'कबीर' ठहरे | ||
− | |||
कोई ये फ़क़ीर ठहरे, और जी लगाओ ना ।। | कोई ये फ़क़ीर ठहरे, और जी लगाओ ना ।। | ||
+ | </poem> |
10:55, 16 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
(एक)
जले तो जलाओ गोरी,पीत का अलाव गोरी
अभी न बुझाओ गोरी, अभी से बुझाओ ना ।
पीत में बिजोग भी है, कामना का सोग भी है
पीत बुरा रोग भी है, लगे तो लगाओ ना ।।
गेसुओं की नागिनों से, बैरिनों अभागिनों से
जोगिनों बिरागिनों से, खेलती ही जाओ ना ।
आशिकों का हाल पूछो, करो तो ख़याल- पूछो
एक-दो सवाल पूछो, बात जो बढ़ाओ ना ।।
(दो)
रात को उदास देखें, चांद को निरास देखें
तुम्हें न जो पास देखें, आओ पास आओ ना ।
रूप-रंग मान दे दें, जी का ये मकान दे दें
कहो तुम्हें जान दे दें, मांग लो लजाओ ना ।।
और भी हज़ार होंगे, जो कि दावेदार होंगे
आप पे निसार होंगे, कभी आज़माओ ना ।
शे'र में 'नज़ीर' ठहरे, जोग में 'कबीर' ठहरे
कोई ये फ़क़ीर ठहरे, और जी लगाओ ना ।।