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|रचनाकार=गँग
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फूट गये हीरा की बिकानी कनी हाट हाट,
कहै कवि गँग दुरजोधन से छत्रधारी,
::तनक मे फूँके तें गुमान बाको नै गयो।
::फूटे ते नरद उठि जात बाजी चौसर की,::आपुस के फूटे कहु कौन को भलो भयो।
'''गँग का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।'''</Poempoem>