Changes

:शूर्पणखा से बोले लक्ष्मण, सावधान कर उसे सुजान-
"मायाविनि, उस रम्य रूप का, था क्या बस परिणाम यही?
:इसी भाँति लोगों को छलना, है क्या तेरा काम यही?
विकृत परन्तु प्रकृत परिचय से, डरा सकेगी तू न हमें,
:अबला फिर भी अबला ही है, हरा सकेगी तू न हमें।
वाह्य सृष्टि-सुन्दरता है क्या, भीतर से ऐसी ही हाय!
:जो हो, समझ मुझे भी प्रस्तुत, करता हूँ मैं वही उपाय।
कि तू न फिर छल सके किसी को, मारूँ तो क्या नारी जान,
:विकलांगी ही तुझे करूँगा, जिससे छिप न सके पहचान॥
 
उस आक्रमणकारिणी के झट, लेकर शोणित तीक्ष्ण कृपाण,
:नाक कान काटे लक्ष्मन ने, लिये न उसके पापी प्राण।
और कुरूपा होकर तब वह, रुधिर बहाती, चिल्लाती,
:धूल उड़ाती आँधी ऐसी, भागी वहाँ से चिल्लाती॥
<poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits