:हिलने लगे उष्ण साँसों में, ओंठ लपालप-लत्तों से!
कुन्दकली-से दाँत हो गये, बढ़ बारह की डाढ़ों से,
:विकृत, भयानक और रौद्र रस, प्रगटे पूरी बाढोंबाढ़ों-से?
जहाँ लाल साड़ी थी तनु में, बना चर्म का चीर वहाँ,
उस आक्रमणकारिणी के झट, लेकर शोणित तीक्ष्ण कृपाण,
:नाक कान काटे लक्ष्मन ने, लिये न उसके पापी प्राण।
और कुरूपा होकर तब वह, रुधिर बहाती, चिल्लातीबिललाती,
:धूल उड़ाती आँधी ऐसी, भागी वहाँ से चिल्लाती॥
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