:उत्तर देते हुए उसे फिर, निज गम्भीर भाव लाये-
"सुन्दरि, मैं सचमुच विस्मित हूँ, तुमनो तुमको सहसा देख यहाँ,
:ढलती रात, अकेली बाला, निकल पड़ी तुम कौन कहाँ?
पर अबला कहकर अपने को, तुम प्रगल्भता रखती हो,
:निर्ममता निरीह पुरुषों में, निस्सन्देह निरखती हो!
</poem>