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"पिता-1 / रंजना जायसवाल" के अवतरणों में अंतर

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22:12, 1 फ़रवरी 2010 का अवतरण

बेटों की मनमानी से
नाराज़ पिता
रूठकर निकल जाते हैं
बार-बार घर से
और लौट आते हैं
उस बूढे़ पक्षी की तरह
नहीं बची जिसमें
आकाश में
निर्द्वन्द्व उड़ने की क्षमता

चुके हैं पंख
आँखों की तेज़ी
चोंच का नुकीलापन
चढ़ चुका है
समय की भेंट...

असहाय से
निर्बल क्रोध में
घुटते पिता
लड़खडाते क़दमों से
लौट आते हैं
बार-बार

उसी घर में
जहाँ बेटे करते हैं
अपनी मनमानी...।