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"माँ-3 / रंजना जायसवाल" के अवतरणों में अंतर
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22:16, 1 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
माँ
बेचैन रहती थी
हर पल
घर-गृहस्थी
पति-बच्चों के लिए
चुप पडी़ है आज
उसे फ़िक्र ही नहीं जैसे
बिल्ली से दूध बचाने की
नाश्ता-खाना बनाने की
बच्चों के झगडे़ सुलझाने की
जब तक वह थी
नहीं पा सकी सुकून
क्या सभी माएँ ऐसी ही होती हैं
मरकर ही चैन से सोती हैं...।