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कवि: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=निदा फ़ाज़ली]][[Category:कविताएँ]][[Category:गज़ल]][[Category:|संग्रह=मौसम आते जाते हैं / निदा फ़ाज़ली]];खोया हुआ सा कुछ / निदा फ़ाज़ली}} {{KKCatGhazal}}<poem>अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैंरुख हवाओं का जिधर का है, उधर के हम हैं |
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता हैअपने ही घर में, किसी दूसरे घर के हम हैं |
अपनी मर्ज़ी वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से किसको मालूम, कहाँ अपने सफ़र के हम हैं<br>रुख हवाओं का जिधर का है, उधर किधर के हम हैं |<br><br>
पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है<br>जिस्म से रूह तलक अपने ही घर मेंकई आलम हैंकभी धरती के, किसी दूसरे घर कभी चाँद नगर के हम हैं |<br><br>
वक़्त के साथ चलते रहते हैं कि चलना है मिट्टी मुसाफ़िर का सफ़र सदियों से<br>नसीबकिसको मालूम, कहाँ के सोचते रहते हैं, किधर किस राहगुज़र के हम हैं |<br><br>
जिस्म से रूह तलक अपने कई आलम हैं<br>कभी धरती के, कभी चाँद नगर के हम हैं |<br><br> चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब<br>सोचते रहते हैं, किस राहगुज़र के हम हैं |<br><br> गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम<br>हर क़लमकार की बेनाम ख़बर के हम हैं |<br><br/poem>
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