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"देखते जाओ मगर कुछ भी / क़तील" के अवतरणों में अंतर
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− | देखते जाओ मगर कुछ भी जुबां से न कहो | + | देखते जाओ मगर कुछ भी जुबां से न कहो | |
− | मसलिहत का ये तकाज़ा है की खामोश रहो | + | मसलिहत का ये तकाज़ा है की खामोश रहो || |
− | लोग देखंगे तो अफसाना बना डालेंगे | + | लोग देखंगे तो अफसाना बना डालेंगे| |
− | यूँ मेरे दिल में चले आओ के आहट भी न हो | + | यूँ मेरे दिल में चले आओ के आहट भी न हो|| |
− | गुनगुनाती हुई रफ्तार बड़ी नेमत है | + | गुनगुनाती हुई रफ्तार बड़ी नेमत है| |
− | तुम चट्टानों से भी फूटो तो नदी बन के बहो | + | तुम चट्टानों से भी फूटो तो नदी बन के बहो|| |
− | ग़म कोई भी हो जवानी में मज़ा देता है | + | ग़म कोई भी हो जवानी में मज़ा देता है| |
− | ग़म-ए-जहाँ जो नहीं है ग़म-ए-दौरान ही सहो | + | ग़म-ए-जहाँ जो नहीं है ग़म-ए-दौरान ही सहो|| |
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+ | हो चुके प्यार में रुसवा सर-ए-बाज़ार क़तील| | ||
+ | अब कोई हम को नहीं फ़िक्र जो होना है सो हो|| | ||
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05:04, 16 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
देखते जाओ मगर कुछ भी जुबां से न कहो |
मसलिहत का ये तकाज़ा है की खामोश रहो ||
लोग देखंगे तो अफसाना बना डालेंगे|
यूँ मेरे दिल में चले आओ के आहट भी न हो||
गुनगुनाती हुई रफ्तार बड़ी नेमत है|
तुम चट्टानों से भी फूटो तो नदी बन के बहो||
ग़म कोई भी हो जवानी में मज़ा देता है|
ग़म-ए-जहाँ जो नहीं है ग़म-ए-दौरान ही सहो||
हो चुके प्यार में रुसवा सर-ए-बाज़ार क़तील|
अब कोई हम को नहीं फ़िक्र जो होना है सो हो||