भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"माचिस / छोड़ आए हम वो गलियाँ" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKFilmSongCategories |वर्ग=अन्य गीत }} {{KKFilmRachna |रचनाकार=?? }} <poem> छोड़ आए हम, वो गलि…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:23, 21 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
रचनाकार: ?? |
छोड़ आए हम, वो गलियाँ - ४
जहाँ तेरे पैरों के, कँवल गिरा करते थे
हँसे तो दो गालों में, भँवर पड़ा करते थे
तेरी कमर के बल पे, नदी मुड़ा करती थी
हँसी तेरी सुन सुन के, फ़सल पका करती थी
छोड़ आए हम ...
जहाँ तेरी एड़ी से, धूप उड़ा करती थी
सुना है उस चौखट पे, अब शाम रहा करती है
लटों से उलझी-लिपटी, इक रात हुआ करती थी
कभी कभी तकिये पे, वो भी मिला करती है
छोड़ आए हम ...
दिल दर्द का टुकड़ा है, पत्थर की डली सी है
इक अंधा कुआँ है या, इक बंद गली सी है
इक छोटा सा लम्हा है, जो ख़त्म नहीं होता
मैं लाख जलाता हूँ, यह भस्म नहीं होता
यह भस्म नहीं होता ...
छोड़ आए हम ...