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22:24, 21 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

रचनाकार: ??                 

तुम गए सब गया
कोई अपनी ही मिट्टी तले दब गया
तुम गए सब गया

कोई आया था कुछ देर पहले यहाँ
ले के मिट्टी से लेपा हुआ आसमाँ
क़ब्र पर डाल कर वो गया
कब गया
तुम गए सब गया

हाथों पैरों में तनहाईयाँ चलती हैं
मेरी आँखों में परछाईयाँ चलती हैं
एक सैलाब था सारा घर बह गया
फिर भी जीने का थोड़ा सा डर रह गया
ज़ख़्म जीने के क्यूँ दे गया
जब गया
तुम गए सब गया