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"कह नहीं सकता / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर
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कह नहीं सकता | कह नहीं सकता | ||
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मुझ को उदासी क्यों पकड़ लिया करती है | मुझ को उदासी क्यों पकड़ लिया करती है | ||
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अपनी राह आता हूँ जाता हूँ | अपनी राह आता हूँ जाता हूँ | ||
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कोई भी लगाव अलगाव नहीं | कोई भी लगाव अलगाव नहीं | ||
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और सिलसिला जो चल निकला है | और सिलसिला जो चल निकला है | ||
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चलता ही जाता है | चलता ही जाता है | ||
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फिर भी मन मेरा मौन साध साध लेता है | फिर भी मन मेरा मौन साध साध लेता है | ||
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कल देखी | कल देखी | ||
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बरसाती नदी | बरसाती नदी | ||
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वह पेटी में सिकुड़ सिकुड़ गई थी | वह पेटी में सिकुड़ सिकुड़ गई थी | ||
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वह प्रवाह कहाँ था | वह प्रवाह कहाँ था | ||
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जिस से भय लगता था | जिस से भय लगता था | ||
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अब जल को घेर कर पौधे उग आए थे | अब जल को घेर कर पौधे उग आए थे | ||
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कहीं कहीं घास और कहीं कहीं काई थी | कहीं कहीं घास और कहीं कहीं काई थी | ||
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जो कुछ भी पानी था ठहरा था | जो कुछ भी पानी था ठहरा था | ||
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मैं ने जाते सूरज को देख अलविदा कहा | मैं ने जाते सूरज को देख अलविदा कहा | ||
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कहते हैं चुप रहना अच्छा है | कहते हैं चुप रहना अच्छा है | ||
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अपनी चुप छोड़ कर हर कोई कहता है | अपनी चुप छोड़ कर हर कोई कहता है | ||
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05:29, 22 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
कह नहीं सकता
मुझ को उदासी क्यों पकड़ लिया करती है
अपनी राह आता हूँ जाता हूँ
कोई भी लगाव अलगाव नहीं
और सिलसिला जो चल निकला है
चलता ही जाता है
फिर भी मन मेरा मौन साध साध लेता है
कल देखी
बरसाती नदी
वह पेटी में सिकुड़ सिकुड़ गई थी
वह प्रवाह कहाँ था
जिस से भय लगता था
अब जल को घेर कर पौधे उग आए थे
कहीं कहीं घास और कहीं कहीं काई थी
जो कुछ भी पानी था ठहरा था
मैं ने जाते सूरज को देख अलविदा कहा
कहते हैं चुप रहना अच्छा है
अपनी चुप छोड़ कर हर कोई कहता है