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"कुछ तो एहसास-ए-ज़ियाँ था पहले / नासिर काज़मी" के अवतरणों में अंतर

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ये अलग बात कि ग़म रास है अब
 
ये अलग बात कि ग़म रास है अब

08:37, 23 फ़रवरी 2010 का अवतरण

कुछ तो एहसास-ए-ज़ियाँ<ref>नुकसान का एहसास</ref> था पहले
दिल का ये हाल कहाँ था पहले

अब तो मन्ज़िल भी है ख़ुद गर्म-ए-सफ़र
हर क़दम संग-ए-निशाँ था पहले

सफ़र-ए-शौक़ के फ़रसंग न पूछ
वक़्त बेक़ैद-ए-मकां था पहले

ये अलग बात कि ग़म रास है अब
इस में अंदेशा-ए-जाँ था पहले

यूँ न घबराये हुये फिरते थे
दिल अजब कुंज-ए-अमाँ था पहले

अब भी तू पास नहीं है लेकिन
इस क़दर दूर कहाँ था पहले

डेरे डाले हैं बगुलों ने जहाँ
उस तरफ़ चश्म-ए-रवाँ था पहले

अब वो दरिया न बस्ती न वो लोग
क्या ख़बर कौन कहाँ था पहले

हर ख़राबा ये सदा देता है
मैं भी आबाद मकाँ था पहले

क्या से क्या हो गई दुनिया प्यारे
तू वहीं पर है जहाँ था पहले

हम ने आबाद किया मुल्क-ए-सुख़न
कैसा सुनसान समाँ था पहले

हम ने बख़्शी है ख़मोशी को ज़ुबाँ
दर्द मजबूर-ए-फ़ुग़ाँ था पहले

हम ने रोशन किया मामूर-ए-ग़म
वरना हर सिम्त धुआँ था पहले

ग़म ने फिर दिल को जगाया "नासिर"
ख़ानाबरबाद कहाँ था पहले