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"खुमानी, अखरोट! / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर

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ख़ुमानी मोटी थी और अख़रोट का क़द कुछ ऊँचा था
 
ख़ुमानी मोटी थी और अख़रोट का क़द कुछ ऊँचा था
 
भँवर कोई पीछे पड़ जाए, तो पत्थर की आड़ से होकर,
 
भँवर कोई पीछे पड़ जाए, तो पत्थर की आड़ से होकर,
अख़रोट का हाथ पकड़ क्के वापस भाग आती थी।
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अख़रोट का हाथ पकड़ के वापस भाग आती थी।
  
 
अख़रोट बहुत समझाता था,
 
अख़रोट बहुत समझाता था,
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ख़ुमानी को पाँव से उठाकर, तुग़यानी में कूद गया।
 
ख़ुमानी को पाँव से उठाकर, तुग़यानी में कूद गया।
  
अख़रोट अब भी उस जानिब देखा करता है, जिस जानिब दरिया बहता है।
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अख़रोट अब भी उस जानिब देखा करता है,  
अख़रोट का क़द कुछ सहम ग्या है
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जिस जानिब दरिया बहता है।
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अख़रोट का क़द कुछ सहम गया है
 
उसका अक़्स नहीं पड़ता अब पानी में!
 
उसका अक़्स नहीं पड़ता अब पानी में!
 
 
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11:24, 24 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

ख़ुमानी, अख़रोट बहुत दिन पास रहे थे
दोनों के जब अक़्स पड़ा करते थे बहते दरिया में,
पेड़ों की पोशाकें छोड़के,
नंग-धड़ंग दोनों दिन भर पानी में तैरा करते थे
कभी-कभी तो पार का छोर भी छू आते थे

ख़ुमानी मोटी थी और अख़रोट का क़द कुछ ऊँचा था
भँवर कोई पीछे पड़ जाए, तो पत्थर की आड़ से होकर,
अख़रोट का हाथ पकड़ के वापस भाग आती थी।

अख़रोट बहुत समझाता था,
"देख ख़ुमानी, भँवर के चक्कर में मत पड़ना,
पाँव तले की मिट्टी खेंच लिया करता है।"

इक शाम बहुत पानी आया तुग़यानी का,
और एक भँवर...
ख़ुमानी को पाँव से उठाकर, तुग़यानी में कूद गया।

अख़रोट अब भी उस जानिब देखा करता है,
जिस जानिब दरिया बहता है।
अख़रोट का क़द कुछ सहम गया है
उसका अक़्स नहीं पड़ता अब पानी में!