{| style="color:black"
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| bgcolorwidth="white300" width bgcolor= "400white"|<poem>मिटटी दा मैं बावा बनाणीआं
उत्ते चा दिन्नी आं खेसी
वतनां वाले माण करन
सानूं गल नाल लाजा वे
मेरा सोहणा माही, आजा वे
</poem>||width="300" bgcolor="CEF0FF"|<poem>मिटटी से मैं बच्चा बनाती हूं
उसे कंबल उढ़ाती हूं
जिनके पति साथ हैं, वो खुश हों
मेरा पति तो परदेसी है
मेरे सुँदर माही, आजा वे
घर के सामने बेरी का पेड़ लगाती हूँ
हर घर में हमारी बातें होती हैं
आकर अपना चेहरा दिखा जाओ
मेरे सुँदर माही, आजा वे
घर के सामने पानी बहता है
मेरा अकेले मन नहीं लगता
मुझे सीने से लगा लो
मेरे सुँदर माही, आजा वे
</poem>
|| width="400" bgcolor="blue"|cell2
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