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मेघा छाए आधी रात / शर्मीली का नाम बदलकर देख सकते नहीं तुमको / इंदीवर कर दिया गया है
मेघा छाए आधी रात, {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=इंदीवर}}[[Category:गीत]]<poem>देख सकते नहीं तुमको जी भर के हमदिल में किसके ग़ुमां क्या गुज़र जाएगातुमको अपना कहें तो कहें किस तरह सारी महफ़िल का चेहरा उतर जाएगादेख सकते नहीं ...
बैरन बन गई निंदिया बता दे मैं क्या करूँ मेघा छाए आधी रात, तुम भी बेताब हो हम भी बेचैन हैंदिल में मिलने की हसरत मचलने लगीसब्र का अब तो दामन सुलगने लगाप्यार की आग सीने में जलने लगीतुमको मिलने न पाए अगर आज हमलगता है दिल ही ठहर जाएगादेख सकते नहीं ...
बैरन बन गई निंदियाहो किसी देश में या किसी भेष मेंशक्लें अपनों की पहचान लेता है दिलतुम कहो न कहो हम कहें ना कहेंबात दिल की तो खुद जान लेता है दिलसामने बस युँही मुस्कराते रहोज़िन्दगी का मुक़द्दर सँवर जाएगादेख सकते नहीं ...
 सब के आंगन दिया जले रे, मोरे आंगन जिया हवा लागे शूल जैसी, ताना मारे चुनरिया कैसे कहूँ मैं मन जानकर की बात, बैरन बन गयीं निंदिया, बता दे मैं क्या करूँ गई हो या अनजाने मेंदुनियावाले खता माफ करते नहींदुनियावालों का ये ज़ुलम तो देखिएमेघा छाए आधी रात, देके भी जो सज़ा माफ करते नहीं बैरन जिँदगी बन गई निंदिया  रूठ गये रे सपने सारे, टूट गयी रे आशा नैन बहे रे गंगा मोरे, फिर भी मन है प्यासा  आई है आँसू कैद इंसान की बारात, बैरन बन गयी निंदिया बता दे मैं क्या करूँ कोई इलज़ाम लेकर किधर जाएगादेख सकते नहीं ...मेघा छाए आधी रात,  बैरन बन गई निंदिया</poem>
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