अनुभव से अधिक
उपदेश है
खुलेपन से ज्यादा ज़्यादा
बनावटीपन है
एक दिन किसी ने कहा
छलछला आयी आई उसकी आँखें सुन कर
कहनेवाले को लगा
आसुओं आँसुओं के साथ उसका
कोरा उपदेश बह गया
उसका बनावटीपन झर गया
एक घडी थी
एक चूल्हा था
परांत परात और बेलन था
छुरी और दरांती थी
सुई-धागा था
झाड़ू था
सीले-सिकुड़े कपड़ों का ढेर था
बाजार बाज़ार की थैली थी
अनाज का डिब्बा था
नोन-मिर्च के साथ
कापियां थीं, पेंसिलें थीं
तहाई हुई, साफ़ धुली चद्दरें थीं
प्रेस किये किए हुए कपड़ों का ढेर था
गिनती पूरी नहीं हुई थी कहने वाले की
असलियत उस पर खुल गयी गई थी
फिर भी
जबान उद्दंडता से
उसकी पहचान ढूंढ ढूँढ रही थी
और अचानक वह कौंधी
उसकी असली मुस्कान चौंधियाती हुई
कहनेवाले के दिल तक उतर आयी आई
और वह
उसकी असलियत को नकार न सका
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