"घर जब बना लिया तेरे दर पर कहे बग़ैर / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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− | जानेगा | + | जानेगा अब भी तू न मेरा घर कहे बग़ैर <br><br> |
कहते हैं, जब रही न मुझे ताक़त-ए-सुख़न <br> | कहते हैं, जब रही न मुझे ताक़त-ए-सुख़न <br> | ||
− | जानूं किसी के दिल की मैं | + | जानूं किसी के दिल की मैं क्योंकर कहे बग़ैर <br><br> |
− | काम | + | काम उससे आ पड़ा है कि जिसका जहान में <br> |
लेवे ना कोई नाम सितमगर कहे बग़ैर <br><br> | लेवे ना कोई नाम सितमगर कहे बग़ैर <br><br> | ||
− | जी में ही कुछ नहीं है हमारे वगरना हम <br> | + | जी में ही कुछ नहीं है हमारे, वगरना हम <br> |
− | सर जाये या रहे न रहें पर कहे बग़ैर <br><br> | + | सर जाये या रहे, न रहें पर कहे बग़ैर <br><br> |
छोड़ूँगा मैं न उस बुत-ए-काफ़िर का पूजना <br> | छोड़ूँगा मैं न उस बुत-ए-काफ़िर का पूजना <br> | ||
छोड़े न ख़ल्क़ गो मुझे काफ़िर कहे बग़ैर <br><br> | छोड़े न ख़ल्क़ गो मुझे काफ़िर कहे बग़ैर <br><br> | ||
− | + | मक़सद है नाज़-ओ-ग़म्ज़ा वले गुफ़्तगू में काम <br> | |
चलता नहीं है, दश्ना-ओ-ख़ंजर कहे बग़ैर <br><br> | चलता नहीं है, दश्ना-ओ-ख़ंजर कहे बग़ैर <br><br> | ||
− | + | हरचन्द हो मुशाहित-ए-हक़ की गुफ़्तगू <br> | |
बनती नहीं है बादा-ओ-साग़र कहे बग़ैर <br><br> | बनती नहीं है बादा-ओ-साग़र कहे बग़ैर <br><br> | ||
09:49, 2 मार्च 2010 का अवतरण
घर जब बना लिया तेरे दर पर कहे बग़ैर
जानेगा अब भी तू न मेरा घर कहे बग़ैर
कहते हैं, जब रही न मुझे ताक़त-ए-सुख़न
जानूं किसी के दिल की मैं क्योंकर कहे बग़ैर
काम उससे आ पड़ा है कि जिसका जहान में
लेवे ना कोई नाम सितमगर कहे बग़ैर
जी में ही कुछ नहीं है हमारे, वगरना हम
सर जाये या रहे, न रहें पर कहे बग़ैर
छोड़ूँगा मैं न उस बुत-ए-काफ़िर का पूजना
छोड़े न ख़ल्क़ गो मुझे काफ़िर कहे बग़ैर
मक़सद है नाज़-ओ-ग़म्ज़ा वले गुफ़्तगू में काम
चलता नहीं है, दश्ना-ओ-ख़ंजर कहे बग़ैर
हरचन्द हो मुशाहित-ए-हक़ की गुफ़्तगू
बनती नहीं है बादा-ओ-साग़र कहे बग़ैर
बहरा हूँ मैं तो चाहिये दूना हो इल्तफ़ात
सुनता नहीं हूँ बात मुक़र्रर कहे बग़ैर
"ग़ालिब" न कर हुज़ूर में तू बार-बार अर्ज़
ज़ाहिर है तेरा हाल सब उन पर कहे बग़ैर