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<poem>
असमानों उत्तरी इल्ल वे
 
तेरा केहड़ी कुड़ी उत्ते दिल वे
 सभ्भे ने कुआरियाँ , जीवें ढोला ! 
ढोल मक्खना !
 
दिल परदेसियाँ दा राज़ी रखना !
 
'''भावार्थ'''
 
--'आकाश से चील उतरी
 
अरे तुम्हारा किस युवती पर दिल है ?
 
सभी कुंवारी हैं
 जीते रहो, ढोला सजन ! ओ ढोल सजना ! ओ मक्खन ! परदेशियों परदेसीओं का दिल राज़ी रखना !'</poem>